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मुसाफिर -26-Jul-2022

शीर्षक-   बढ़ते कदम
 मुसाफिर!
       तान ले यदि तीर अपना मंजिल की ओर 
       सोंचकर उम्मीदों पर खरे उतर रहे हम ,
       दुनिया तुम्हारा नाम क्यों याद रखेगी ?
       बस छोड़ दे तीर यह समझकर ,
       है केवल सोंच और कर्मों में दम |
       प्रकृति के हो खिलौने निराले ,
      खेल-खेल में हो रोशन कर दे चमन ;
      टूट जाओगे समय से पहले समझते हो यही ,
      समय के चक्र से अछूता है कौन ?
      समय पर जीना मरना ही है प्रकृति का नियम ||मुसाफिर !
      चल पड़ जिधर मंजिल है तेरी ,
      मत देख नीचे कंकड़ पड़ा ,
      देंगे केवल ठोकरे ना रोकेंगे तेरे बढ़ते कदम |
      मंजिल गले लगा लेगी जिस दिन तुम्हें ,
      मिटेगी हर क्लेष जलेगी मन में प्यार की ज्योति 
     लगेगा छू लिया आसमान आंखों से बरसेगी मोती ,
     जीवन का रहस्य समझ पाया ना कोई ,
     बस समर्पण कर दे खुद को,
      सफलता खुद चूमेगी तेरी बढ़ते कदम ||
 
         Rambriksh, Ambedkar Nagar
 

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12 Comments

Saba Rahman

26-Jul-2022 11:43 PM

Nice

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Khan

26-Jul-2022 10:54 PM

Nice

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shweta soni

26-Jul-2022 09:35 PM

Bahut khub 👌

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